~वो पहली बारिश की खूसबू~
कभी कभी ये ख़याल आता हे के…….
तुम हो कौन…….
कभी तुम मौम की तरह पिघल जाती तो……
फिर कभी पत्थर की तरह चट्टान बन जाती हो…..
तुम हो कौन…..
एक अर्शा लग गया…..
तुम्हें समझ ने मे…..
पर तुम हो कौन……पर तुम हो कौन….
वो पहली बारिश की बूँद हो तुम…..
ओ मिट्टी की खूसबू हो तुम……
कौन हो तुम……कौन हो तुम……..
कौन हो तुम
जलती धूप में घना साया
तपती रेत में
मरासम हो तुम
कौन हो तुम
साथ साथ चलता कौई साया हो तुम
किसी खोया हुआ बच्चे का हमसफर हो तुम।a.
MashaAllah
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Pahli Barish ki Wo Khusboo….