………वो शिलशिले ।।।।।।।
ये तो आप के महेरबानी….
ना आप आते…ना वो मुलाक़ातें होती
ना ओ बातें ना वो मिलने की सिलसिले…..
कुछ तो हे ……हाँ कुछ तो हे……..
ना आप मिलते ना ओ शिलशिले आगे बढ़ती …
ना ओ मुलाक़ातें ना ओ मिलने की ख़्वाहिश होती…….
आप आए तो मानो जैसे जिंदेगी ने करवट बदल डाली…….
वो लमहे…वो बीती हुई पल भर की ख़ुशियाँ
जैसे मानो की जन्नत मेरे हाथ में हो…..
क्या पता….अब भी राह देख रहा हूँ………
इंतहा की घड़ी शायद…..आ चुकी हे….
पर अब भी मुझे तलाश हे ठीक उशि पल की….
वो पूल कि उपेर खड़े खड़े पानी में पत्थर फेंकना……
पानी में ख़ुद को शमा लेने की वो एहसास….
वही तो कड़ी थी…जीवन भर की एक अनोखी…
एहसास थी……
क्या पता….अब भी राह देख रहा हूँ………
CreativeSiba
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